नया सवेरा
माटी के महक
नया सवेरा
(दोहा)
नया सवेरा आ गया, जाग उठो इंसान ।
स्वागत कर लो भोर का, नहीं बनो शैतान ।।
खिली हुई है बाग में, कलियाँ चारों ओर ।
चिड़िया चहके नीड़ में, मचा रही है शोर।।
टन टन घंटी बज रही, मंदिर जाते लोग ।
पूजा करते प्रेम से, लेकर छप्पन भोग।।
कोरोना अब दूर हो, माँगे सब वरदान ।
संकट सबके टाल दो, दया करो भगवान ।।
माटी को अब चूमकर, "माटी" तिलक लगाय।
इस माटी से प्रेम है, प्राण इसी में जाय।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
नया सवेरा
(दोहा)
नया सवेरा आ गया, जाग उठो इंसान ।
स्वागत कर लो भोर का, नहीं बनो शैतान ।।
खिली हुई है बाग में, कलियाँ चारों ओर ।
चिड़िया चहके नीड़ में, मचा रही है शोर।।
टन टन घंटी बज रही, मंदिर जाते लोग ।
पूजा करते प्रेम से, लेकर छप्पन भोग।।
कोरोना अब दूर हो, माँगे सब वरदान ।
संकट सबके टाल दो, दया करो भगवान ।।
माटी को अब चूमकर, "माटी" तिलक लगाय।
इस माटी से प्रेम है, प्राण इसी में जाय।।
महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता
ReplyDeleteबधाई हो