सावन में झूलों का उत्सव



(1) सावन में झूलों का उत्सव
(ताटंक छंद)

बादल गरजे आसमान में, सबके मन हर्षाया है।
सावन में झूलों का उत्सव,  खुशियाँ लेकर आया है ।।

चमचम चमके बिजली रानी,  बादल शोर मचाते हैं ।
इन्द्रधनुष की छटा निराली, सातों रंग सजाते हैं ।।

इन्द्र देव भी खुश होकर के, पानी अब बरसाया है।
सावन में झूलों का उत्सव,  खुशियाँ लेकर आया है ।।

रंग बिरंगे फूल देखकर,  तितली भी इठलाती है।
जैसी कोई नई नवेली, प्रियतम से शर्माती है ।।

फूलों की खुशबू को पाकर,  भौंरा गाने गाया है।
सावन में झूलों का उत्सव,  खुशियाँ लेकर आया है ।।

झूला झूले सखी सहेली,  रस्सी बाँधे डालों में ।
सजी हुई हैं परियाँ जैसी,  महके गजरा बालों में ।।

माटी की सौंधी खुशबू ने, मन उमंग भर लाया है ।
सावन में झूलों का उत्सव,  खुशियाँ लेकर आया है ।।

राह तकूँ मैं पल पल अब तो,  सपना तुने दिखाई है।
भूल गई क्यों वादा करके, कसमें तू जो खाई है ।।

सपनों की दुनियाँ में "माटी" , कितने रंग सजाया है ।
सावन में झूलों का उत्सव,  खुशियाँ लेकर आया है ।।

तू महलों की रानी बेबी, मैं कुटिया का राजा हूँ ।
सप्त स्वरों की तू सरगम है, मैं तो ढोलक बाजा हूँ ।।

क्या जानूं मैं राग बेसुरा , फिर भी राग लमाया है ।
सावन में झूलों का उत्सव,  खुशियाँ लेकर आया है ।।

महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया छत्तीसगढ़
8602407353
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(2)  डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया
           की रचना
         सावन में झूलों का उत्सव
        
सावन में झूलों का उत्सव,खुशियाँ लेकर आया है।
रिमझिम की रस-बौछारों ने,गीत मिलन का गाया है।।

अंतस तक पहुँची बौछारें,लेकर प्रियतम की पाती।
अभिसारों की मधुर कामना,मचल उठी फिर मदमाती।
असित घटाओं में अलकों की,छिप ,मुख चन्द्र लजाया है।।

पवन बाँह भरने को आतुर,मगर दामिनी भाग गई।
दादुर और शिखावल के उर,प्रीति कसकती जाग गई।
प्राणाधिक हो प्रेम,समर्पण,चातक ने सिखलाया है।।

गोरी के मन के झूले पर,झूलें रसवंती बातें।
वे अलसाये सोये से दिन,वे जागी-जागी रातें।
साँस-साँस हो गई संदली,रोम-रोम बौराया है।।

सावन में झूलों का उत्सव,खुशियाँ लेकर आया है।
रिमझिम की रस-बौछारों ने,गीत मिलन का गाया है।।

  डॉ श्याम मनोहर सीरोठिया
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(3) शंकर जागिड़ दादाजी की रचना

उमड़ घुमड़ कर बदरा छाए सबका मन हर्षाया है,
सावन में झूलों का मौसम खुशियाँ लेकर आया है।

बिजुरी चमके पड़े फुहारें जम कर बरसा पानी ,
आज धरा मां की चूनर का रंग होगया धानी।
बहुत दिनों के बाद रंग बारिश ने ये दिखलाया है।
सावन में झूलों का मौसम खुशियाँ लेकर आया है।

महक उठी है बगिया सारी भँवरे गुन गुन गायें ,
रंग बिरंगी फिरें तितलियाँ इधर उधर इठलायें।
देखो वो सखियों का टोला बाग घूमने आया है,
सावन में झूलों का मौसम खुशियाँ लेकर आया है।

डाल नीम की झूला डाला सखियाँ पींग लगायें,
और सुरंगे सावन में वो गीत मिलन के गायें।
कोयल ने भी तान लगा कर सप्तम सुर में गाया है ,
सावन में झूलों का मौसम खुशियाँ लेकर आया है।

है उदास वो नव विवाहिता साजन जिसके पास नहीं,
करके ब्याह बिदेस गये जल्दी आने की आस नहीं ,
आज सजन की यादों ने सजनी को बहुत रुलाया है ,
सावन में झूलों का मौसम खुशियाँ लेकर आया है।

करें ठिठौली सखियाँ सारी हंस हंस मारे ताने ,
झूला कौन झुलाये उन बिन याद लगी है आने।
सावन भादो लगे बरसने नैन नीर भर आया है ,
सावन में झूलों का मौसम खुशियाँ लेकर आया है।

       शंकर जांगिड़ दादाजी
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(4) डॉ दीक्षा चौबे की रचना

सावन में झूलों का उत्सव ,खुशियाँ लेकर आया है ।
बूंदें छेड़े भीगे तन को ,पावस मन को भाया है ।।

विरहा के प्यासे अम्बर में , सुख का बादल छाया है ।
साजन मेरे घर लौट रहे , यह सन्देशा लाया है ।।

मदमस्त पवन के झोंकों ने , अलकों को सहलाया है ।
मोर की तरह नाच उठा तन , झूम - झूम मन गाया है ।।

मन की इस महकी बगिया में , प्रेम - पुष्प मुस्काया है ।
बारिश की छम - छम बूँदों में , प्यार पिया का पाया है ।।

खुशबू आई प्रथम मिलन की , प्रिय की यादें लाया है ।
संग साजन के झूला झूलूँ  , सोच जिया हरषाया है ।।

स्वरचित - डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग , छत्तीसगढ़
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(5) रेखा  बोरा की गीत

सावन में झूलों का उत्सव खुशियाँ लेकर आया है
तन भीगे मोरा मन भीगे  सावन मन को भाया है
सावन‌ में झूलों का मौसम.....

गरज गरज‌ डरवाये बादल लरज लरज हियरा डोले
तेरी‌ यादों‌ ने साजन मेरे मन को बहुत सताया है
सावन में झूलों का मौसम....
 
घर‌ आये हैं सजना सबके सखियाँ भी इतराती‌ है‌
पहन के‌‌ झुमका चूड़ी कंगन मैंने खुद को सजाया है
सावन में झूलों का मौसम....

जब न आना था तुमको तो वादा क्यों करके निकले
तेरे झूठे वादों ने पिया कितना मुझे रुलाया है
सावन में झूलों का मौसम....

मेरी अँखियाँ प्रियतम मेरे इन बदरा संग होड़ करें
सावन‌ बीता जाये साजन अब तक तू न आया है
सावन में झूलों का मौसम...

आ जाओ अब मेरे प्रियवर राह निहारूँ‌ घड़ी-घड़ी
बाहर झड़ी लगी‌ सावन की न संदेशा आया है
सावन में झूलों का मौसम...

रेखा बोरा,
लखनऊ
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(6)  प्रतिभा त्रिपाठी की कविता

सावन में झूलों का उत्सव, खुशियां लेकर आए।
रिमझिम सावन की बूंदे मन में बौछार लाया ।।

सावन लाएं हंसी ठिठोली,
सखियों का संग भाये।
पीहर में जाकर त्यौहार मनाये,
 ऐसा सावन आया।।
सावन में झूलों का .........

मन प्रफुल्लित,तन प्रफुल्लित
ऐसा सावन का झूला।
हाथों में मेहंदी रची,
कंगना में चूड़ी सजी।।
सावन में झूलों का......

 पड़ गए झूले अमूआ की डाली में
 पर झूला कौन झूलाए।
 सजना की याद में गोरी,
 भर-भर नीर बहाए।।
सावन में झूलों का उत्सव खुशियां लेकर आए,
रिमझिम सावन की बूंदे मन में बौछार लाया।।
 
           प्रतिभा  त्रिपाठ  भिलाई
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(7)   गीता सागर की गीत

सावन में झूला का मौसम, खुशियां लेकर आया है।
रिमझिम रिमझिम पावस ,तन मन को भिगोया है।

उमड़ते घुमड़ते बदरा, ह्रदय में बाण चलाते हैं।
बिजुरी की चम चम, तन में आग लगाते हैं।

अमुआ की डाली पे कोयल, मधुर राग सुनाती है।
ताल तलैया छलके,कल कल नदियाँ बहती है।

झींगुर की झुन झुन धुन,मन को बहुत हर्षाया है।
सावन में झूला का मौसम ,खुशियां लेकर आया है।

मयूर की नृत्य दृश्य से,मन पुलकित होता है।
इंद्र धनुष की छटा से,गगन सुशोभित होता है।

सावन में झूला देख सखी,पिया की याद आई है।
छत में बैठा काक, पिया की  संदेशा लाई है।

झूलने के बहाने यह,साखियों से हमें मिलाती है।
भूले बिछड़े साखियों को,सावन की झूला बुलाती है।

पेड़ पौधों में जान आई,धरती पे हरियाली छाई है।
सावन की घनघोर घटा ,गगन में छाई है।

धानी चुनरिया ओढ़ के, धरा की आँचल लहराया है।
सावन में झूला का मौसम, खुशियां लेकर आया है।

गीता सागर
इन्दरपुर,बसना, महासमुन्द
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(8)  संतोषी महंत श्रद्धा
         गीत

अंबर ने भर-भर कर अमरित
आँगन में छलकाया है।
सावन में झूलों का उत्सव
खुशियाँ लेकर आया है।

भीगी भीगी चाँदनियों ने
बड़ी दूर डेरा डाला।
थमा दिया सावन के हाथों
मधुमय रस का ज्यों प्याला।
सराबोर हो गई धरा ,नभ-
ने अमरीत बरसाया है....
सावन में झूलों का उत्सव...

रंगों के सातों घट बरखा-
ने फिर आज उड़ेल दिए।
पुरवा, मेघ, बूँद ने आकर
वसुंधरा से मेल किए।।
उसी भाँति सतरंगी सपनों-
ने भी रंग जमाया है........
सावन में झूलों के उत्सव.....

गलबहियाँ डोरी करतीं हैं
पेड़ों और लताओं से।
आम्र -कुंज बातें करते हैं
हँस-हँस खूब हवाओं से।।
उन्हें देख सरिता- धारा ने-
तट पर प्रेम लुटाया है......
सावन में झूलों के उत्सव....

सखियाँ हुलस रहीं सज-धजकर
आपस में बतियातीं हैं।
लेकिन पढ़ प्रियतम की पाती
सबसे भेद छुपातीं हैं।।
अबकी बार सजन ने उनको
जी भर कर तड़पाया है.......
सावन में झूलों का उत्सव......

वातायन ज्यों खुले गगन के
गंधिल हुई हवाएँ हैं।
मरु सी देह महक से महकी,
महकी दसों दिशाएँ हैं।
मदन- महल के जादूगर ने-
चितवन को भरमाया है.......
सावन में झूलों का उत्सव....

         संतोषी महंत "श्रद्धा"
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(9)  रश्मि मंजुला पंडा की रचना

रंग बिरंगी फुलवारी से,सजकर मौसम आया है।
सावन में झूलों का उत्सव,खुशियां ले कर आया है।

प्रियतम का सब सुध बुध खो कर,
हाथों में मेहंदी लगाई है।
प्रेम से उर छलका जाए,
जब से पाती पाई है।

मिलने की स्वर्णिम आस ने,
अंतर्मन को महकाया है।
सावन में झूलों का उत्सव,
खुशियां ले कर आया है।

हरी - हरी चूड़ियां पहन कर,
गोरियों ने श्रृंगार किया है।
सावन की रिम झिम बूंदों में,
साजन का दीदार किया है।

मोती बन कर बूंदों ने भी,
गीत सुनहरा गाया है।
सावन में झूलों का उत्सव,
खुशियां लेकर आया है

रश्मि मंजुला पंडा
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(10)   प्रकाश चन्द्र बरनवाल

गीत शीर्षक :- 'विरह की ज्वाला'

रंग - बिरंगे सपनों से मिल, बरखा अगन जगाया है।
सावन में झूलों का मौसम, खुशियाँ लेकर आया है।।

झूल रही हैं सखियाँ सारी, मिलकर खुशी मनाने को।
आएँगे साजन कब मिलने, तन की अगन मिटाने को।।

कब से आस लगाए बैठी, चित्त बावरा है चंचल।
सावन झम - झम बरस रहा है, कर देता है मन घायल।।

बागों की हरियाली से भी, पीर नहीं थम पाती है।
चंचल मदमाते यौवन को, चैन नहीं मिल पाती है।।

कब तक मन को हर्षाऊँगी, इस कदम्ब की डाली से।
सखियों का तन - मन हर्षित है, सजना के घर आने से।।

पल - पल तेरी याद सताए, हृदय कमल मुरझाया है।
सावन में झूलों का मौसम, खुशियाँ लेकर आया है।।

प्रकाश चन्द्र बरनवाल
'वत्सल' आसनसोल
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Comments

  1. वाह बहुत बढ़िया बढ़िया गीत बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

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